Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ विषेषार्थ :- . प्रश्न :- अंगुल के असंख्यातवा भाग की जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना पृथ्वीकायादि की ही है। दूसरे किसी की भी है ? उत्तर :- सभी को जन्म समय के-उत्पत्ति के प्रथम समय पर शरीर की जघन्य __अवगाहना अंगुल के असंख्यातवा भाग की होती है। प्रश्न :- उत्पत्ति के प्रथम समय पर सभी दंडको में इतनी सूक्ष्म अवगाहना किस तरह हो सकती है ? उत्तर :- पूर्व भव में कितना भी बडा शरीरवाला जीव हो वह मृत्यु पाकर दूसरे भव में उत्पत्ति स्थान में उत्पन्न होते समय प्रथम अपनी आत्मा को अत्यंत संकुचित करके अंगल के असंख्यातवा भाग जितनी बनाकर, कोयले में गिरता हुआ अग्नि के कण के समान उत्पत्ति स्थान में उत्पन्न होता है और बाद में कोयले में गिरा हुआ अग्नि का कण धीरे-धीरे बढ़ता है वैसे वह जीव भी धीरे-धीरे अपना शरीर बड़ा बनाता है। दूसरे जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना नारक की उत्कृष्ट अवगाहना 500 धनुष्य की, देवों की उत्कृष्ट अवगाहना सात हाथ की है। इस तरह सामान्य से नारकों और देवों की अवगाहना कही गई है। (1) फूटनोट :विशेषतः देव-नरको की अवगाहना इस तरह समझनी। नरक का नाम जघन्य शरीर उत्कृष्ट शरीर 1) रत्नप्रभा 3 हाथ 7|| ध.६ अंगुल 2) शर्कराप्रभा .. 7 / / ध.६ अं. 15 / / ध.१२ अंगुल 3) वालुकाप्रभा 15 / / घ.१२ अं 31 / घ. 4) पंकप्रभा . ३१॥ध 62 / / ध 5) धूमप्रभा 62 / / ध 125 ध 6) तमःप्रभा 125 ध 250 ध 7) तमस्तमःप्रभा 250 ध 500 ध | दंडक प्रकरण सार्थ (47) अवगाहना द्वार