Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ . 2. अवगाहना द्वार पहले चार स्थावर अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय इनको दो प्रकार से याने उत्कृष्ट और जघन्य से अंगुल का असंख्यातवा भाग जितना शरीर होता है / लेकिन उत्कृष्ट शरीर जघन्य शरीर से असंख्यगुणा बड़ा समझना / ____ अवगाहना के माप में जो अंगुल गिना है, वह महावीर भगवान के आत्मांगुल से आधा प्रमाण का उत्सेधांगुल समझना चाहिए। और वह प्रमाण भी प्रभु की अनामिका या तर्जनी अंगुली की दूसरी पर्व रेखा से आधा गिनना, इस अंगुल का भी असंख्यातवा भाग लेना, वह अत्यंत सूक्ष्म होता है, इसलिए पृथ्वीकायादि चार का शरीर भी इतना सूक्ष्म होता है। पृथ्वीकायादि का एक शरीर भी सूक्ष्मदर्शक यंत्र के सर्वोत्कृष्ट कांच से भी नहीं देख सकते तो फिर चर्मचक्षु से तो कहां से दिखाई देगा? ऐसे असंख्य सूक्ष्म शरीर इकट्ठा होने पर जब एक पिंड बनता है। तब हम उसको देख सकते हैं। इसलिए कंकर, रेत, पत्थरादि जो पृथ्वीकाय आदि हम देखते है वह उनका एक शरीर नही है, लेकिन असंख्य शरीर का एक पिंड है। और वह हरेक एक-एक शरीर में पृथ्वीकायादि का एक-एक जीव रहा हुआ है। पृथ्वीकायादि की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवा भाग होने पर भी अरस-परस शरीर में जो अंतर है वह निम्न प्रकार से है : सूक्ष्म वनस्पतिकाय सबसे अल्प, उससे सूक्ष्म वायुकाय असंख्यगुणा बडा, उससे सूक्ष्म अग्निकाय असंख्यगुणा बडा, उससे सूक्ष्म अपकाय असंख्यगुणा बडा, उससे सूक्ष्म पृथ्वीकाय असंख्यगुणा बडा, उससे .. बादर वायुकाय असंख्यगुणा बडा, उससे दिंडक प्रकरण सार्थ (45) अवगाहना द्वार