Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ पर्याप्त कहा जाता है।. ___शुरुआत की तीन पर्याप्ति पूर्ण करे या उसमें से कोई भी एक पूर्ण करे या स्वयोग्य जो जो है वह पूर्ण करे, इसकी वजह से वह करण पर्याप्त कहा जाता है। और शुरुआत की भी पूर्ण न की हो, या उसमें से जो जो पूर्ण की हो या स्वयोग्य जो जो है वह पूर्ण न की हो तो उसकी वजह से वह करण अपर्याप्त कहा जाता है। _आहारादि पुद्गलों का परिणमन करने के लिए उत्पत्ति समय से लेकर हर समय समय पर आते पुद्गलों के समूह में से आत्मा छह प्रकार की जीवन क्रियाएँ चलाने के लिए जो साधन प्राप्त करता है उसे पर्याप्ति कहते है और वह पर्याप्त और अपर्याप्त नामकर्म के उदय से प्राप्त होती है। इसका विशेष विचार नवतत्त्व की छट्ठी गाथा के विवेचन से जानना। 20. किमाहार-४ किम् ? आहार :- कौनसी दिशा का अथवा कितनी दिशा का आहार ? वह किमाहार द्वार अथवा दिगाहार नाम भी है। किसी भी जीव को कम से कम तीन दिशा में से आया हुआ आहार मिलता है। उससे बढ़कर चार, पांच, छ दिशाओं का भी आहार मिलता है इस तरह किमाहार द्वार चार प्रकार का है। दिशाएँ छह है :- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उर्ध्व, अधो __एक चोरस डिब्बे में राई के दाने ठांस-ठांस के भरे हुए हैं। एक दाने के चारो ओर तथा ऊपर, नीचे की ओर इस तरह छह दाने रहे हुए होते हैं। उसके बीच में रहा हुआ एक दाना में कोई भी एक जीव हो तो वह अपने चारो ओर के छ: दानाओं की छः दिशा की ओर से आहार प्राप्त कर सकता है। . लेकिन बराबर ऊपर के कोने में रहा हुआ अंतिम एक दाने के दोनों तरफ और नीचे की बाजु में सीधे हार में रहे हुए दानों में से तीन ही दाने स्पर्श करके रहे है। इसलिए उनमें रहे हुए जीव को अन्य तीन बाजु की ओर से डिब्बा का पतरा दंडक प्रकरण सार्थ (37) किमाहार द्वार