Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 3) आम आदि के बहुत पेड वाले वन को आम प्रधान की मुख्यता की अपेक्षा से आम का वन के रूप में सोचे, ऐसे मिश्र औपचारिक वाक्य सोचे वह मिश्र मनोयोग। 4) व्यवहार में हम जो जो अनेक प्रकार के आओ, बैठो' आदि काम करते समय जो वाक्य सोचा जाय और पशु आदि जो अस्पष्ट विचार करते है वे सभी इस चौथे प्रकार में आते हैं। वचनयोग-४ उपरोक्त ढंग से वचनयोग भी 4 प्रकार से समझना। काययोग-७ 1. औदारिक काययोग :- औदारिक शरीर की गमनादि क्रिया के . समय पर आत्मा में चलनेवाला जो व्यापार. 2. औदारिक मिश्र काययोग :- कार्मण शरीर और औदारिक शरीर या औदारिक शरीर और वैक्रिय शरीर या आहारक शरीर से मिश्रित शरीर की .. चेष्टा के समय पर आत्मा में चलता जो व्यापार वह औदारिक मिश्र। कितने आचार्य शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक मिश्र योग मानते है। और कितने आचार्य सर्व पर्याप्ति पूर्ण होने तक मिश्र योग मानते है। इनका मतलब यह है कि कितने शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद औदारिकादि काययोग मानते हैं और कितने सर्व पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद औदारिकादि काययोग मानते हैं। कर्मग्रंथ के मतानुसार वैक्रिय और आहारक शरीर की रचना और विसर्जन के समय पर वैक्रिय मिश्र और आहारक मिश्र है। सिद्धांतानुसार :- सिर्फ विसर्जन के समय पर ही वैक्रिय मिश्र और आहारक मिश्र हैं। __ औदारिक मिश्र योग :- 1. मनुष्य और तिर्यंचो को उत्पन्न होने के दंडक प्रकरण सार्थ (34) . मनोयोग द्वार