Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ मन में निर्णय करती है। वह भी एक तरह से ज्ञानगुण की जागृति है। इसमें जीभ और उसकी भीतर के अवयव को निवृत्ति द्रव्य इन्द्रिय कहा जाता है। जिसमें स्वयं के विषय जानने की जो एक शक्ति है उसे उपकरण द्रव्य इन्द्रिय कहा जाता है। निवृत्ति-द्रव्य इन्द्रिय में जीभ के बाहर का जो अवयव है वह बाह्य निवृत्ति द्रव्य इन्द्रिय कही जाती है। और भीतर के अवयव को अभ्यन्तर निवृत्ति द्रव्य इन्द्रिय कहते है। और काम में आनेवाली, विषय जानने की शक्ति को उपकरण इसलिए कहते है कि उस शक्ति से बाह्य और अभ्यंतर अवयव भी पदार्थ को जानने के लिए समर्थ हो सकता है। ___ आत्मा में रही हुई ज्ञानशक्ति और उसकी जागृति को भावेन्द्रिय कहते है। उसे जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम कहा जाता है। और वह एक प्रकार की शक्ति रूप होने से उसका नाम लब्धि भावेन्द्रिय कहा जाता है। लब्धि याने शक्ति। आत्मा में शक्ति होने पर भी जहां तक उसका उपयोग करने का अवसर नहीं मिलता वहां तक वह शक्ति ऐसी ही पड़ी रहती है। लेकिन जीभ पर शक्कर का कण रखते ही वह शक्ति जागृत हो जाती है। वह शक्ति जागृत होने की प्रक्रिया को उपयोग भावेन्द्रिय कहते है। इस तरह किसी भी इन्द्रिय के तेवीस विषयों में से अपने-अपने विषय के साथ बाह्य आकार के द्वारा भीतर के आकार के साथ संबंध होता है। और अपनी शक्ति से अपने विषय को जानने का प्रयत्न द्रव्य इन्द्रिय करती है तो तुरंत ही उसकी असर आत्मा में रहे हुए ज्ञानावरण के क्षयोपशम पर होता है। और वह जागृत होकर यह मीठा है ऐसा जानकर निर्णय करता है कि मैने मीठा रस चखा' इस अंतिम निर्णय को शब्द रचना में रखना वह श्रुतज्ञान का उपयोग समझना। लेकिन शब्द रचना न होने पर भी निश्चय होता है वहां तक जिद्वेन्द्रिय के निमित्त से उत्पन्न होनेवाला जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम का उपयोग समझना। दंडक प्रकरण सार्थ (24) द्रव्य और भाव इन्द्रियां