Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ 1. बाह्य निवृत्ति जिद्धेन्द्रिय- बाहर दिखाई देनेवाली जीभ। 2. अभ्यंतर निवृत्ति जिह्वेन्द्रिय- जीभ के भीतर रही हुई खुरपी जैसे आकार 3. उपकरण जिह्वेन्द्रिय- बाहर और भीतर के आकार में रही हुई तलवार के ___ धार में काटने की शक्ति की तरह विषय पकड़ने की शक्ति। 4. लब्धि भाव जिह्वेन्द्रिय- जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्मो के क्षयोपशम * अनुसार जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञान शक्ति। 5. उपयोग भाव जिवेन्द्रिय- जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्मो के क्षयोपशमरूप जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञान का व्यापार।. ९.समुद्घात-७ जीव और अजीव ऐसे दो प्रकार के समुद्घात है। आगे कहे जानेवाले केवलि समुद्घात की तरह कोई अनंत परमाणुओं से,बना हुआ अनंत प्रदेशी स्कंध तथाविध विश्रसा परिणाम से (स्वाभाविक रूप से) चार समय में पूरे लोकाकाश में फैल जाता है और दूसरे चार समय में अनुक्रम से संहरण बिखर जानेसे मूल अवस्था में याने अंगुल के असंख्यातंवे भाग प्रमाण होता है। उनको अजीव समुद्घात कहा जाता है। वह पूरा लोकाकाश में व्याप्त होने की योग्यता वाले या व्याप्त हुए पुद्गल स्कंध अनंत है। वे सभी अचित्त महा स्कंध के नाम से पहचाने जाते है। समुद्घात-इसका अर्थ यह होता है कि बलात्कार से आत्मप्रदेशो को अचानक बाहर निकाल कर अति पुराने कर्मो की उदीरणा करके, भोगकर नाश करने का जो प्रयत्न, उसे समुद्घात कहते है / सम्-एक साथ, उत्-जोर से प्रबलता से, घात-नाश, कर्मो का नाश करना। जिस प्रयत्न से एक साथ कर्मो का नाश होता है। उसे समुद्घात कहते है। | दंडक प्रकरण सार्थ (26) समुद्घात द्वार |