Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 7. दंडक पद :- दंडक शब्द का अर्थ यह है कि मुख्य और अति महत्व के बारबार उपयोग में आनेवाले आगम सूत्रों के जो पाठ होते हैं वह दंडक पद - कहे जाते हैं। '(सामायिक दंडक उच्चरावोजी)' अथवा दण्डयन्ते जीवा यस्मिन्, स दण्डकः अर्थात् सिद्ध, बुद्ध, निर्मल, निरंजन, निराकार, अनंत बल, वीर्य, ज्ञान, दर्शनवंत आत्मा जिसमें कर्मादि दंडो से दंडित होता है, और अनेक विषम-स्थिति को भोगता है ऐसे पदों को दंडक पद कहा जाता है। (दंडगपय-भमण-भग्ग-हिययस्स (43)) इस गाथा की रचना बहुत गहरे रहस्यमय होने से, अच्छी तरह से ध्यान देकर समझें। 24 दंडक पद गाथा नेरइआ असुराईपुढवाईबेइन्दियादओचेवः गब्भयतिरिय-मणुस्सा, वंतर, जोइसिय,वेमाणी||२|| संस्कृत अनुवाद नैरयिका असुरादयः, पृथ्व्यादयोद्रीन्द्रियादयश्चैव। गर्भजतिर्यगमनुष्या, व्यंतरोज्योतिष्कोवैमानिकः॥२॥ शब्दार्थ :नेरइया-नारकों तिरिय-तिर्यंच असुराई-असुरकुमार आदि मणुस्सा-(गर्भज) मनुष्य पुढवाई-पृथ्वीकाय आदि वंतर-व्यन्तर बेइन्दियादओ-बेइन्द्रिय आदि जोइसिय-ज्योतिषी गब्भय-गर्भज वेमाणी-वैमानिक | दंडक प्रकरण सार्थ (4) 24 दंडक पद