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मन्त्रीकी नियुक्ति
विश्वस्त हितैषी ग्यवहारकुशल महामन्त्री इन तीनोंका किसी एक विषयमें ऐकमत्य होजाना कार्यका निष्पादक मानाजाता है ।
कार्याकार्यतत्वार्थदर्शिनो मन्त्रिणः॥ ३३॥ कार्य, अकार्य दोनोंकी वास्तविकताको ठीक ठीक समझनेवाले ( अर्थात् मन्त्रकी यथार्थताको स्वभावसे पहचान जानेवाले ) अपने नियत वेतनसे अधिक न चाहनेवाले तथा मन्त्रके रहस्यको समझानेवाले मन्त्री होने चाहिये।
विवरण- मन्त्री लोग विद्याओं में पारंगत विशुद्धकुलीन धर्म, अर्थ दोनों में प्रवीण सरल स्वभाववाले ब्रह्मवेत्ता होने चाहिये । मन्त्र जब प्रारंभ में ही भेद पा जाता है तब किसीके बसका नहीं रहता। इस दृष्टिसे मन्त्रियों के निर्धारणमें बड़ी सावधानीकी मावश्यकता है । मन्त्रसंगोपनकी शक्ति ही मन्त्रियों का एकमात्र मूल्य है। पाठान्तर- अकामबुद्धयो मन्त्रतत्वार्थदर्शिनो मन्त्रिणः।
अकामबुद्धि (अर्थात राजकाजसे अपना कोई व्यक्तिगत स्वार्थ निकालना न चाहनेवाले स्वार्थशून्य अलोलुप निमसर विवेकी । लोग मन्त्री बनाये जाने चाहिये।
पटकर्णाद् भिद्यते मन्त्रः ॥ ३४ ॥ मन्त्र छः कानों में पहुंचनेपर फूट निकलता है । विवरण-मन्त्र राजा तथा मुख्यमन्त्रीके अतिरिक्त किसी भी तीसरे व्यक्तिके कानोसक पहुंचते ही असार तथा हतवीर्य होजाता है। तीन मन्त्रियोंकी मन्त्रणाका फूट जाना प्रायः सुनिश्चित है। यही इस सूत्रका भाव है। इसके अनुसार जब मन्त्रणाको अन्तिम निश्चित रूप मिलना हो . उस समय केवल दो उत्तरदायी मनुष्य ही उसे निश्चित अन्तिम रूप दें। जब कि दोकी मन्त्रणाके ही सुरक्षित रहसकनेका सिद्धान्त मान लिया जाय, तब " त्रयाणामेकवाक्ये संप्रत्ययः” इस सूत्रके " त्रयाणाम् ' इस पदका