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मन्त्रीकी योग्यता
चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य नान्ये जना कर्म जानन्ति किंचित् । मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्पोप्यस्य च्यवते कश्चिदर्थः ॥ विदुर.
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पूरा होने से पहले जिसके चिकीर्षित तथा आरब्ध शत्रुविरोधी कामको दूसरे लोग जान ही नहीं पाते, जिसका मन्त्र काममें आचुकने तक पूरा पूरा गुप्त रहता है, उसका कोई भी काम अधूरा या खण्डित नहीं हो पाता । कार्यान्धस्य प्रदीपो मन्त्रः ॥ २९ ॥
मन्त्र अंधेरे में मार्ग दिखानेवाले दीपकके समान कार्यान्ध ( किंकर्तव्यविमूढ ) को उसका कर्तव्यमार्ग दिखा देता है । विवरण - जैसे गृहस्वामी दीपकके विना रात्रिके अंधकार में अपने ही सुपरिचित घरमें अन्धा बना रहता है इसी प्रकार मनुष्य मन्त्र (सुविचार ) विना कर्तव्यपालनमें अन्धा बना रहता है ।
पाठान्तर-- कार्याकार्य प्रदीपो मन्त्रः ।
यह कार्य इष्टसाधन है या अनिष्ट साधन है ? इस प्रकारके संशयान्धकार के समय मन्त्र अंधकारविनाशक दीपकका काम करता है । जैसे दीपक अन्धकारको हटाता है इसी प्रकार मन्त्र प्रज्ञाकी मन्दतारूपी अंधेरे के समय, उसे हटाकर मनुष्यको बुद्धिकी प्रखरतारूपी प्रकाश देता है । इस लिये वृद्ध लोग कह गये हैं " सम्मन्त्र्य सूरिभिः सार्धं कर्म कुर्याद्विचक्षणः ।' बुद्धिमान मनुष्य, उन विषयोंके विशेषज्ञों के साथ सम्मन्त्रणा करके काम करे तो पूरा होने में संशय न रहे । अमन्त्रित कार्यों की स्थिति जलमें कखे घडकी सी होती है । सम्मन्त्रित कार्य तो जलमें पक्व कुम्भके समान अटळ बने रहते हैं ।
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मन्त्रचक्षुषा परछिद्राण्यवलोकयन्ति ॥ ३० ॥
विजीगीषु राजा लोग मन्त्रियोंसे परामर्श करने रूप आंख से प्रतिपक्षियोंकी राष्ट्रीय निर्बलताओंको जान लेते हैं ।