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पत्ता-ईया से बोझिल (भरे हुए) चुगलखोरों के कथन (पालाप) से उसके द्वारा (राम के द्वारा) (मेरे मन में) जो संताप उत्पन्न किया गया है, वह सैकडों (बार) मेहों के बरसने से भी कठिनाई से शान्त किया जायगा ।
83.8
[7] सतीत्व के गर्व के कारण सीता नहीं डरी, (सीता द्वारा) मुड़कर ईर्ष्या और गर्व से कहा गया (माक्रमण किया गया)। [8] 'पुरुष चाहे गुणवान हों अथवा तुच्छ किन्तु स्त्री के द्वारा चाहे (वह) मरती हुई (हो, तो भी) वे विश्वास किये जाते हैं।
घत्ता घास फूस (व) लकड़ी को बहाती हुई (ले जाती हुई) प्राचीन और पवित्र नर्मदा (नदी) का जल (समुद्र में गिरता है) तो भी समुद्र खार को देता हुआ नहीं थकता है ।
83.9
[1] किसी (भी) जन के द्वारा कुत्ता आदर नहीं दिया जाता, (यदि) वह गंगा नदी में भी नहलाया जाय । [2] चन्द्रमा कलंकसहित (होता है) (किन्तु) उससे (उत्पन्न) प्रभा निर्मल (होती है) । मेघ काला (होता है) (पर) उससे (उत्पन्न) बिजली उज्ज्वल (होती है)। [3] पत्थर अपूज्य (होता है) (इसलिए) किसी के द्वारा भी छुपा नहीं जाता (तो भी) उससे ही (बनी हुई) प्रतिमा चन्दन से लीपी जाती है । [4] यदि कीचड़ लगता है, (तो) पांव धोया जाता है, किन्तु (कीचड़ में उत्पन्न) कमल की माला जिनेन्द्र के (चरणों में) चढ़ती है । [5] दीपक स्वभाव से काला होता है, (तो भी) बत्ती की शिखा से घर सुशोभित किया जाता है । [6] नर और नारी में इतना (ही) अन्तर है कि मरने पर भी (नारी-रूपी) बेल (नर-रूपी) वृक्ष को नहीं छोड़ती है । [7] तुम्हारे द्वारा यह बोल किसलिए प्रारम्भ किया गया (है) । मेरे द्वारा आज भी सतीत्व की पताका भली प्रकार से ऊँची की गई है । [8] तुम देखते हुए (हो) (कि) मैं (आज भी) अत्यन्त विश्वास-युक्त (हूँ), यदि अग्नि जलाने के लिए समर्थ है (तो) जलावे।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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