Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 336
________________ पाठ-1 पउमचरिउ सन्धि-22 प्रस्तुत कडवक महाकवि स्वयंभू विरचित पउमचरिउ से लिया गया है । यह उस समय का वर्णन है जब राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों का विवाह सम्पन्न कराकर अयोध्या लौट आते हैं। 22.1 अयोध्या पाने के पश्चात् दशरथ-पुत्र राम अषाढ़ की अष्टमी के दिन पत्नी (सीता) के साथ जिनेन्द्र का अभिषेक करवाते हैं। स्वयं दशरथ भी अभिषेक करते हैं। जिनेन्द्र के अभिषेक का गन्धोदक सभी को दिया जाता है। (दशरथ की रानी) सुप्रभा के पास गंधोदक देर से पहुंचता है जिससे सुप्रभा नाराज होती है। इसका कारण जानने के लिए राजा दशरथ कंचुकी को वहाँ बुलाते हैं। 22.2,3 कंचुकी अपनी वृद्धावस्था को देरी से आने का कारण बताते हुए नश्वर शरीर का वर्णन करता है। कंचुकी के द्वारा नश्वर शरीर का सजीव वर्णन सुनकर राजा दशरथ को विरक्ति हो जाती है और वे सम्पूर्ण वैभव (राज्य) राघव को देकर तप करने का दृढ़ निश्चय करते हैं । अपने विचार के अनुसार दशरथ राम के राज्याभिषेक एवं स्वयं के संन्यासग्रहण की घोषणा करते हैं । 22.7.8 राम के राज्याभिषेक की घोषणा से रानी कैकेयी विचलित हो उठती है, वह अपने पुत्र भरत को राजा बनाना चाहती है। इसके लिए वह दशरथ द्वारा पूर्व में स्वीकृत दो वचनों की याद दिलाकर राजा दशरथ द्वारा दूसरी घोषणा करवाती है। रानी कैकेयी के वचन मानकर राजा दशरथ भरत के लिए राज्य, राम के लिए वनवास और स्वयं के लिए प्रव्रज्या की घोषणा करते हैं। 233 इसके बाद राम स्वयं अपने हाथों से भरत के सिर पर राजपट्ट बांधते हैं और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास को जाने के लिए माता से प्राज्ञा लेने जाते हैं। राम की माता अपराजिता राम से उनके उद्विग्न चित्त व सादगी से, बिना वैभव से आने का कारण पूछती है । राम माता से वनवास को जाने की आज्ञा मांगते हुए पूर्व में अपनी ओर से किये गये अपराधों की क्षमा मांगते हैं। अपभ्रंश काध्य सौरम ] [ 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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