________________
2.10,11 प्रस्तुत काव्यांश मुनि नयनन्दिकृत 'सुदंसरणचरिउ' से लिया गया है ।
चम्पानगरी में ऋषभदास नाम के एक सेठ थे । उनके सुभग नाम का एक ग्वाला था । उस सुभग ग्वाले को एक बार वन में मुनिराज के दर्शन होते हैं । मुनिराज के द्वारा वह णमोकार मन्त्र का उपदेश प्राप्त करता है । वह निरन्तर उसका जाप करता है। सेठ ऋषभदास उसको मन्त्र का प्रभाव समझाते हैं और साथ में सप्त व्यसनों के दुष्परिणाम के बारे में भी बताते हैं ।
ये सप्तव्यसन क्या है ? इनके परिणाम कैसे होते हैं ? यही प्रस्तुत काव्यांश में वरित है । सेठ ऋषभदेव गोप को समझाते हुए कहते हैं कि ये सप्त-व्यसन करोड़ों जन्मों तक भारी दुःखों को देनेवाले हैं । अतः हे पुत्र ! तू मन को संयम में रख और इन व्यसनों से दूर रह ।
पाठ-10
सुदंसरणचरिउ
8.7 प्रस्तुत कडवक सुदंसरणचरिउ की आठवीं सन्धि से लिया गया है । महामुनि के उपदेशों के प्रभाव से ऋषभदास सेठ को संसार से विरक्ति होती है और वे अपने पुत्र को गृहस्थी का भार सौंप कर तपस्या के लिए चले जाते हैं । उनका पुत्र सुदर्शन व पुत्रवधू मनोरमा प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं । वसन्तोत्सव में रानी अभया सुदर्शन को देखकर उस पर मुग्ध हो जाती है और सुदर्शन को अपने वश में करने की दृढ़ प्रतिज्ञा करती है । वह कहती है-या तो वह सुदर्शन को वश में करेगी अन्यथा मर जायेगी ।
पंडिता (रानी की दासी) रानी को समझाती हुई कहती है कि आवेग में आकर शील का नाश नहीं करना चाहिए । प्रस्तुत काव्य में शील की प्रशंसाकर उसके कारण अमर हुई अनेक सतियों के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं और रानी को बार-बार समझाया है कि हर तरह से शील की रक्षा करनी ही चाहिए । शील ही सच्चा प्रभूषण है, शीलवान की सभी सराहना करते हैं ।
8.9 पंडिता के बार-बार समझाने पर भी रानी अभया अपना हठ नहीं छोड़ती है और सुदर्शन की रट लगाये रहती है तो पंडिता सोचती है और कहती है- जो कुछ, जिस प्रकार, जिसके द्वारा जहाँ होने वाला है, वह उसी देहधारी के द्वारा, वहाँ पर घटित होकर ही रहेगा । होनहार प्रति बलवान होता है, वह टलता नहीं । इस कडवक में इसी तथ्य को अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है ।
36
]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
www.jainelibrary.org