Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 340
________________ 77.4 राम द्वारा समझाने पर विभीषरण जवाब देते हैं - हे राघव ! मैं इतना इसलिए रोया हूँ कि रावण ने अपना अपयश अधिक फैलाया है, उसने अपने इस अमूल्य जीवन को तिनके के समान बना दियाँ । उसका जीवन व्यर्थ ही गया, यही सोचकर मैं रोता हूँ । अपभ्रंश काव्य सौरभ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only [ 27 www.jainelibrary.org

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