Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 338
________________ पाठ-3 पउमचरिउ सन्धि-27 27.14 प्रस्तुत काव्यांश पउमचरिउ से लिया गया है । इसमें राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास के समय की एक घटना का वर्णन है । वनवास में वे वनों, पर्वतों आदि में भटकते रहते हैं । इस काव्यांश में बताया है कि तीनों विन्ध्याचल पर्वत, ताप्ती नदी पार कर आगे बढ़ जाते हैं। मार्ग में सीता को प्यास सताने लगी। पानी की खोज करते हुए, सीता को सान्त्वना देते हुए तीनों अरुण गांव में आए। वहां उन्हें एक घर दिखाई दिया, वह घर बिल्कुल खाली और सुनसान था । वे उस घर में प्रवेश करते हैं और पानी पीते हैं। वह कपिल नाम के व्यक्ति का घर था । वह अत्यन्त क्रोधी स्वभाव का था। उसी समय कपिल वहाँ आता है । राम, लक्ष्मण और सीता को अपने घर में देखकर वह क्रोध से चिल्लाता है । उसके कटु वचनों को सुनकर लक्ष्मण, क्रोधित हो उठते हैं । वे उसे मारने लगते हैं, राम उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं और आगे बढ़ जाते हैं । 27.15 चलते-चलते दिन के अन्तिम प्रहर में उस घने वन में उन्हें एक महावटवृक्ष दिखाई दिया, जिस पर विभिन्न प्रकार के पक्षी बैठे हुए कलरव कर रहे थे। वह वटवृक्ष ऐसा दिखा मानो स्वयं उपाध्याय आसन पर स्थित हों। राम और लक्ष्मण ने उस वृक्ष को प्रणाम कर अभिनन्दन किया। सन्धि-28 जैसे ही सीतासहित राम व लक्ष्मण उस वृक्ष के नीचे बैठते हैं वैसे ही आकाश में बादल छा जाते हैं । आकाश में छाए हुए बादल किस प्रकार लग रहे हैं, इसी का पालंकारिक वर्णन इस काव्यांश में है। 28.1,2,3 आकाश में बादल छा जाना, बिजलियां कड़कना, उन सभी को चीरते हुए वर्षा का आना, प्रस्तुत कडवकों में कवि ने इन सब का, युद्ध में सेना के बाणों के प्रहार के समान कल्पना कर, वर्णन किया है । अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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