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इस ग्रन्थ की रचना संसार से भयभीत मुमुक्षुत्रों को संबोधने के लिए की गई है । 'योगसार' का योग मुक्ति का उपाय है । यह स्व को स्व के द्वारा स्व से जोड़ने की प्रक्रिया का वर्णन करता है ।
दोनों रचनाएं अपभ्रंश के विशिष्ट छन्द 'दोहा' में रचित हैं । जोइन्दु के अधिकांश वर्णन साम्प्रदायिकता से अलिप्त हैं इसलिए उनकी पदावली व काव्यशैली सहज-सामान्य है, प्रिय है, लोक- प्रचलित है । उन्होंने अपने दोहों में लोकोक्तियों और मुहावरों का भी प्रयोग किया है इससे आध्यात्मिक तत्व भी सर्वजन बोध्य हो गये हैं । उनकी रहस्यमयी रचनाओं का प्रभाव परवर्ती अपभ्रंश कवियों पर ही नहीं अपितु हिन्दी के सन्तकवियों पर भी प्रचुरता से पड़ा है ।
विशेष अध्ययन के लिए सहायक ग्रन्थ
1. परमात्मप्रकाश और योगसार -- श्रीमद् योगीन्दु, प्रकाशक - श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचन्द्र श्राश्रम, श्रगास (गुजरात) 1
2. परमात्मप्रकाश प्रकाशक - प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर - 3 |
और योगसार चयनिका -सम्पादक - डॉ. कमलचन्द सोगाणी,
3. जैनविद्या - 9 - योगीन्दु विशेषांक, नवम्बर 1988, प्रकाशक- जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी, जयपुर - 4 |
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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