Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ इनमें से अन्तिम सात रचनाएं अभी उपलब्ध नहीं हुई हैं। रइधू की विशिष्टता है कि गृहस्थ होते हुए उन्होंने विपुल साहित्य की रचना की। ग्रन्थ-रचना एवं मूर्तिप्रतिष्ठा-कार्य उनकी अभिरुचि के प्रमुख विषय थे। इन्हें उक्त विशाल साहित्य का निर्माण करने की प्रतिभा अपने पिता से उत्तराधिकार में मिली थी। धण्णकुमारचरिउ-प्रस्तुत ग्रन्थ एक पौराणिक चरितकाव्य है । इसमें एक श्रेष्ठि-पुत्र धन्यकुमार का जीवनचरित निबद्ध है । धन्यकुमार अपने पूर्वभव में अकृतपुण्य नाम का एक पितृविहीन दरिद्र बालक था । एक बार उसने अपनी माँ के साथ एक मुनिराज को आहारदान किया। उसी के फलस्वरूप वह देवगति में जन्मा और बाद में धन्यकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ। इस भव में सर्वगुण-सर्वसाधन सम्पन्न होते हुए भी उसे पूर्वकृत कर्मों के कारण अनेक विपत्तियों/आपदाओं का सामना करना पड़ता है पर वह तब भी धैर्य और साहस नहीं छोड़ता । अपने साले शालिभद्र के वैराग्य से प्रेरणा लेकर धन्यकुमार को भी वैराग्य हो जाता है जिससे वह भी दीक्षा लेकर तप करता है और सद्गति प्राप्त करता है । विशेष अध्ययन के लिए सहायक ग्रन्थ1- रइधू ग्रन्थावली-भाग-1, 2 सम्पादक-डॉ. राजाराम जैन, प्रकाशक-जीवराज जैन ग्रन्थमाला, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, महाराष्ट्र । 2 रइधू साहित्य का पालोचनात्मक परिशीलन-डॉ राजाराम जैन, प्रकाशक-प्राकृत, जैनशास्त्र अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, बिहार । अपभ्रंश काव्य सौरमैं 1 । 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358