________________
8.
सरण
कियन्तहो
जइ
7. जइ
9.
गासइ
सासणु अरहन्तहो
श्रवरें
उग्गमइ
faaree
मेरु- सिहरे
जइ
णिवसइ
सायरु
एउ
असे
वि
सम्भाविज्जइ
सीयहे
सोलु
रण
पुणु
मइलिज्जइ
जह
एव
वि
पड
पत्तिज्जहि
तो
परमेसर
एउ
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
( मरण) 1 / 1 (faua) 6/1
अव्यय
( गास ) व 3 / 1 अक
( सारण ) 1/1
( अरहन्त ) 6 / 1
Jain Education International
अव्यय
( अवर ) 3 / 11
( उग्गम ) व 3 / 1 अक
( दिवायर) 1 / 1
[ ( मेरु) - ( सिहर ) 7 / 1]
अव्यय
( रिणवस ) व 3 / 1 अक
( सायर) 1/1
(अ) 1 / 1 सवि (असेस) 1/1 वि
अव्यय
( सम्भ + आव (प्रे ) सम्भाव सम्भाविज्ज) प्रे. व कर्म 3 / 1 सक
( सीया ) 6/1
(सील) 1 / 1
अव्यय
अव्यय
( मइल ) व कर्म 3 / 1 सक
अव्यय
अव्यय
अव्यय
अव्यय
( पति + ज्ज 2 ) व 2 / 1 सक
अव्यय
( परमेसर ) 8/1
(अ) 2/1 स
मरण
यमराज का
यदि
नष्ट होता है
शासन
श्ररहन्त का
For Private & Personal Use Only
यदि
पश्चिम दिशा में
उगता है
सूर्य
पर्वत के शिखर पर
यदि
रहता है
सागर
यह
सब
हो
संभावना कराई जा सकती है
सीतां का
शील, आचरण
नहीं
किन्तु
मलिन किया जाता ( सकता है
यदि
इस प्रकार
भी
1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) I
2. 'ज्ञ' पादपूरक है ।
नहीं
विश्वास होता है
तो
हे परमेश्वर
इसको (यह )
1 59
www.jainelibrary.org