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हुय
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रियमर
चितइ पुणे- पुण
अपभ्रंश काव्य सौरभ 1
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(हु) भूकृ 1/1
(ता) 1 / 1 सर्वि
[ (णिय) वि - (मण) 7/1] (ति) व 3 / 1 सक
अव्यय
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हुई
वह
निज मन में विचार करती है ( करने लगी)
बार-बार
[ 127
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