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मणि
मन में अनित्य
अरिगच्च
3. मोहें
बीउ मे-मे करेइ आउक्खए
(मण) 7/1 (अरिणच्च) 1/1 वि (मोह) 3/1 (बद्धअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक (अम्ह) 6/1 स (कर) व 3/1 सक (आउक्खअ) 7/1 (क) 1/1 स अव्यय (क) 6/11 स अव्यय (धर) व 3/1 सक
मोह से जकड़ा हुअर मेरा-मेरा करता है आयु के समाप्त होने पर
कोई
किसी को नहीं पकड़ता है
धरेइ
अप्रारु
अत्यधिक बन्धनवाला
[(अइ) वि-(आर)2 1/1 सवि] अव्यय (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि
नहीं
কিন্তু
किया जाता है (किया जाना चाहिए)
मोह
मोह अंबि
जिणधम्म
(मोह) 1/1 (अंबा→अंबे→अंबि) 8/1 [(जिण)-(धम्म) 2/1] (गह) विधि 2/1 सक अव्यय अव्यय (वि-लंब) विधि 2/1 अक
हे माता जिनधर्म को ग्रहरण करो
गहहि
मत
इह
यहाँ देरी करो
विलंबि
लम्महिं इच्छिय सयलसुक्ख छेइज्जहि
(ज)3/1 स (लब्भहिँ) व कर्म 3/2 सक अनि (इच्छ→इच्छिय) भूकृ 1/2 . [(सयल) वि-(सुक्ख) 1/2] (छेअ) व कर्म 3/2 सक (ज) 3/1 स [(भव)-(दुक्ख)-(लक्ख) 1/2]
जिसके द्वारा प्राप्त किए जाते हैं इच्छित सभी सुख नष्ट किए जाते हैं जिसके द्वारा संसार के लाखों दुःख
भवदुक्खलक्ख
6.
खरण
(खण)7/1
क्षरण में
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या.3-134)। 2. चार→आरबन्धन, इच्छा। 3. अकारान्त पुल्लिग, सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'शून्य' प्रत्यय का प्रयोग भी होता है (श्रीवास्तव, अपभ्रंश
भाषा का अध्ययन, पृ. 147)।
मपत्रंश काव्य सौरम ]
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