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रिणच्चलठियई पाविज्जइ परलोउ
1(णिच्चल) वि-(ठिअ)17/1 वि] (पाव) व कर्म 3/1 सक ((पर) बि-(लोअ) 1/1]
अचलायमान और दृढ़ होने पर प्राप्त किया जाता है पूज्यतम जीवन
धंधई पडियउ सयलु
कम्मई करइ अयाणु मोक्खहर कारण एक्कु खण
(धंध) 7/1
धंधे में (पड→पडिय-→पडिय) भूकृ 1/1 'अ' स्वाचिक पड़ा हुआ (सयल) 1/1वि
सकल (जग) 1/1
जगत (कम्म) 2/2
कर्मों को (कर) व 3/1 सक
करता है (अयाण) I/1 दि
ज्ञानरहित (मोक्ख) 6/1
मोक्ष के (कारण) 2/1 (एक्क) 1/1 दि (खण) 1/1 अव्यय
नहीं अव्यय
भी (चिन) व 3/1 सक
विचारता है. (अप्पाण) 2/1
आत्मा को
वि
चित
अप्पाणु
7. अण्ण
मत
जाणहि अप्पणउ घरु
परियण
तण -
(अण्ण) 1/1 वि अव्यय (जाण) विधि 2/1 सक
जानो (अप्पणअ) 1/1 वि 'अ' स्वाथिक
अपनी (घर)2/1 (परियण) 2/1
नौकर-चाकर (तणु) 2/1
शरीर (इट्ठ) 2/1 दि
इच्छित वस्तु को I (कम्म) + (आयत्तउ)]
कमों के अधीन [(कम्म)-(आयत्तअ) भुकृ 1/1 अनि 'अ' स्वा.] (कारिमअ)1/1थि
बनावटी (आगम) 7/1
प्रागम में (जोइ) 3/2
योगियों द्वारा (सिट्ट) भूकृ 1/1 अनि
बताया गया
इठ्ठ कम्मायत्त
कारिम प्रागमि जोइहि सिठ्ठ
8.
जं
(ज) 1/I सवि
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1461 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 ।
अपांश काध्य सौरम ]
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