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करहित जे.म
दया करो जिससे
दुक्कइ
पाउ
उरि सण्णाहे. बद्धइण
(दया)/1 (कर) विधि 2/1 सक अव्यय अव्यय (ढुक्क) 43/I सक (पाअ) II {उर) 7/1 (सण्णाह3/1 (बद्धअ→बद्धएण→बद्धइण) भूकृ3/1 अनि 'अ' स्वार्थिक अव्यय अव्यय (लग्ग) व 3/1 अक (घाअ) 1/1
प्रवेश करता है (प्रवेश करे) पाप छाती में कवच के कारण बंधे हुए
अवसि
अवश्य (निश्चय ही) नहीं लगता है
लम्ग
घाउ
घाव
पशु, धन, धान्य खेत में
पसुधणधण्णई खेत्तिय करि परिमाणपवित्ति बलियई बहुयई बंधण दुक्करु तोडहुं. जंति.
(पसु)-(घण)-(धण्ण) 7/1} (खेत्त+इय→खेत्तिय) 7/1 'इय' स्वार्थिक (कर) विधि 2/1 सक [(परिमाण)-(पवित्ति) 2/1] (बलिय) 1/2 वि (बहुय) 12 वि (बंधण) 1/. (दुक्कर) 1/1 कि (तोड) 4/1 (जा) व 3/2 अक
परिमारण से प्रवृत्ति गाढ़े (सबल) बहुत बन्धन कठिन तोड़ने के लिए होते हैं
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भोगह करहि पमाणु जिय इंदियः
(भोग) 6/2 (कर) विधि 2/1 सक (पमाण) 2/1 (जिय) 8/1 (इंदिय) 2/2 अव्यय (कर) विधि 2/1 सक (सदष्प) 2/2 कि (हु) व 3/2 अक
भोगों का कर परिमाण हे मनुष्य इन्द्रियों को मत बना दम्भी होते हैं
करि सदप्प हुंति
1. एण→इण (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 143)। 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 । 3. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1511
1941
अपभ्रश काव्य सौरभ
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