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प्रालिंगेहि तहु
सुरवर सारउ वसु-गुण-धारउ
(आलिंग) व 3/1 सक (त)3 6/1 स अव्यय (सुरवर) 1/1 (सारअ) 1/1 वि [(वसु)-(गुण)-(धारअ) 1/1 वि] (प.) 2/1 (सर+एवि) संकृ (थिअ) भूक 1/1 अनि (त) 1/1 सवि अव्यय अव्यय
आलिंगन करती है उसका तब श्रेष्ठ देव . सर्वोत्तम पाठ गुरणों का धारक अवस्था को स्मरण करके स्थिर हुमा
सरेवि थिउ
वह
भी
शोध
3.21
1. जंपद
बोलता है (बोला)
बुज्झहि जरपरिण सारु जिरगवयणु दयावर जणहैं तारु
(जंप) व 3/1 सक अव्यय (बुज्झ) विधि 2/1 सक (जणणी) 8/1 (सार) 2/1 वि [(जिण)-(वयण) 2/1] (दयावर) 2/1 वि (जण) 4/2 (तार) 2/1 वि
समझ माता श्रेष्ठ जिन-वचन को दयावान मनुष्यों के लिए उज्ज्वल
2.
को
कासु रगाहु को
कौन किसका नाथ
कौन
कासु
(क) 1/1 सवि (क) 6/1 सवि (णाह) 1/1 (क) 1/1 सवि (क) 6/1 सवि (भिच्च) 1/1 (जाण) विधि 2/1 सक (संसार) 2/1 अव्यय
भिच्च
जाणहि संसार
किसका नौकर जान संसार को पादपूरक
1. परवर्ती रूप, श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 205 ।' 2. अकारान्त पुल्लिग के षष्ठी एकवचन में 'हु' प्रत्यय भी काम में आता है (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का
अध्ययन, पृष्ठ 150)। 3. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134) ।
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। अपभ्रंश काव्य सौरम
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