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जिम्मच्छर बुहयणलद्धसंसु
1/1] (रिणम्मच्छर) 1/1 वि [[(बुह)-(यण)-(लद्ध) भूकृ अनि - (संसा→संस) 1/1] वि]
अपने कुलरूपी मानसरोवर का राजहंस ईर्ष्यारहित ज्ञानीवर्ग की प्रशंसा प्राप्त कर ली गई
10. उवसग्गु
सहेवि हवेवि साहु पावसइ झाणे मोक्खलाहु
(उवमग्ग) 2/1 (सह+एवि) संकृ (हव+ एवि) संकृ (साहु) 1/1 (पाव) भवि 3/1 सक (झाण)3/1 [(मोक्ख)-(लाह) 2/1]
उपसर्ग सहन करके होकर साधु प्राप्त करेगा ध्यान के द्वारा मोक्ष के लाभ को
11. जिणु
मुरिण गर्ववि हरिसियमणाई रिणयगेह
(जिण) 2/1 (मुणि) 2/1 (गव+एवि) संकृ [[(हरिसिय) भूकृ-(मण) 1/2] वि] [(णिय) वि-(गेह) 2/1] (गय) भूकृ 1/2 अनि (वि) 1/2 वि अव्यय (जण) 1/2
जिनेन्द्र को मुनिवर को प्रणाम करके हर्षित मनवाले निज घर को चले गये दोनों
गयई
विणिग वि जणाई
हो
मनुष्य
12. गोवउ
गोप
बि
वहाँ
बियाणे तहिं मरेवि थिउ वरिणपियउयरए अवयरेवि
(गोवअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक अव्यय
भी (णियाण) 3/1
निवानसहित अव्यय (मर+एवि) संकृ
मरकर (थिअ) भूकृ 1/1 अनि
रहा [(वणि)-(पिया-पिय)-(उयरज)7/1'अ' स्वा.] वणिक की पत्नी के उदर में (अवयर + एवि) संकृ
प्राकर
13. तहिँ
गमए अन्मए
अव्यय (गब्भअ)7/1 'अ' स्वार्थिक (अब्भअ) 7/1 'अ' स्वार्थिक अव्यय (रवि) 1/1
वहाँ गर्भ में प्राकाश में की तरह
सूर्य
132 ]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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