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पुत्तहु
तत्ती
15. महु
मण
अच्छइ
बहुदुक्खायरु
इय
कंदंति
रिवारइ
भायरु
16. प्रच्छहि
कलणु
म
कंदहि
बहिणि
पुर-सयासि
1.
2.
सो
विस
रयणी
17. जिम
णियउरि
धरियउ
खोरे
भरियउ
परपेसरण
जि
पोसियउ
मह-दुक्ख
पालिउ
देहे
लालिउ
तं
(ga) 5/1 (afa) 1/1
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( अम्ह ) 6 / 1 स
(मग) 1 / 1
( अच्छ ) व 3 / 1 अक
[ ( बहु) + (दुक्ख ) + (आयरु ) ]
[ (बहु) वि - (दुक्ख ) - (आयर) 1 / 1 ]
अव्यय
( कंदकंदत कंदती ) वकृ 2 / 1
( णिवार ) व 3 / 1 सक
( भायर) 1 / 1
( अच्छ) विधि 2 / 1 अक
( कलुग) 1 / 1 वि
अव्यय
(कंद) विधि 2 / 1 अक
(afafu) 8/1
[ ( पुर ) - ( सयास) 7 / 1 ]
(त) 1 / 1 सवि
( रिवस ) व 3 / 1 अक
( रयणी) 12/1
अव्यय
[ ( यि ) वि - ( उर ) 2 7 / 1]
( घर धरियअ ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक (खीर) 3/1
पुत्र से संतोष
मेरा
मन
है
बहुत दुःखों की खान
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इस प्रकार
रोती हुई को रोकता है
भाई
ठहरो
करुणा-जनक
मत
रोओ
हे बहिन
नगर के पास
वह
रहता है ( रहेगा ) रात्रि में
पादपूरक
निज छाती से
लगाया गया
दूध से
पोषित
( मर मरियअ ) भूकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक
[ ( पर) वि - (पेसण ) 3 / 1]
दूसरों की सेवा से ही
अव्यय
( पोस पोसिय→ पोसियअ ) भूकृ 1 / 1 'अ' स्वा. पाला गया
[ (मह) वि - ( दुक्ख ) 3 / 1]
बड़े कष्टों से
(पाल) भूकृ 1 / 1
रक्षण किया गया
देह
(देह) 3/1 (लाल ) भूकू 1 / 1 (त) 2/1 स
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता
है ( है. प्रा. व्या. 3 - 137 ) ।
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( है. प्रा. व्या. 3-135 ) ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
स्नेहपूर्वक सम्भाला गया
उसको
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