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होऊ 1
अबुहा
रामण
पमुहा
13. परयारश्या
चिद
खयहो
गया
सत्त
वि
वसणा
एए
कसरणा
1. इयरहें इयरहं
->
पासिउ
सोल
वि
जुबइहे
मंड
मासिउ
( इयर) 6 / 2 वि
दिव्याहरण दिव्याहरणहं[ (दिव्व) + (आहरणहं ) ]
[ ( दिव्व) - ( आहरण ) 6 / 2] ( पास पासिअ ) भूकृ 1 / 1 (सील) 1 / 1
अव्यय
( जुबइ ) 6 / 1
( मंडण ) 1 / 1
(मास) भूकृ 1 / 1
2. हरिवि
पीय
जा
किर
-
बवणे दहब य सीले सीलें
सीय
दु
पर
जल
जलनें
( होअ) भूक 1 / 1
( अबुह ) 1 / 1 वि
( रामण ) 1/1
( पमुह ) 1 / 1 वि
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[( ( पर) वि - ( यार ) - ( रय) भूकृ 1 / 1 अनि ]
अव्यय
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(खय) 6/1
( गय) भूकृ 1 / 1 अनि
(सत्त) 1 / 2 वि
अव्यय
( वसण ) 1/2
(अ) 1/2 सवि
( कसण) 1/2 वि
8.7
( हर + इवि) संकृ
( णीय) भूकृ 1 / 1 अनि
(जा) 1 / 1 सवि
अव्यय
(दहवयण ) 3 / 1 (सील) 3/1 ( सीमा ) 1 / 1 (दड्ड) भूकृ 1 / 1 अनि
अव्यय
(जलन) 3 / 1
हुआ अज्ञानी
रावण आदरणीय/श्र ेष्ठ
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पर स्त्री में अनुरक्त हुप्रा
आखिरकार
विनाश को
गया
सातों
समुच्चय अर्थ में प्रयुक्त
व्यसन
T
अनिष्टकर
अम्य
सुन्दर ग्राभूषणों के
Lam
जाना गया (समझा गया ) शोल
युवती का ग्रामवरण कहा गया
1.
मात्रा के लिए 'उ' को 'ऊ' किया गया है ।
2. कभी - कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134 ) ।
हरण करके ले जाई गई
जो
जैसा कि बतलाया जाता है
रावण के द्वारा
शोल के कारण
सीता
बलाई गई
नहीं
अग्नि के द्वारा
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