________________
रगड कुसोलु मयरणेणुम्मायउ
(जा→जा1-→जाय) विधि 3/1 अक अव्यय (कुसील) 1/1 [(मरणयेण)+ (उम्मायउ)] (मयम) 3/1 (उम्मायअ) 1/1 वि
हो जाए नहीं कुशील
कामवासना के कारण, पागलपन पैदा करनेवाला (ऊमादक)
8. सोलवंतु
बुहय →बुहयणे सलहिज्जा सोलविवज्जिएण
(सीलवंत) 1/1 दि (बुहयण) 3/1 (सलह) व कर्म 3/1 सक [(सील)-(चिवज्जिम) 3/1] (किं) 1/1 सवि (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि
शीलवान विद्वान व्यक्ति के द्वारा प्रशंसा किया जाता है शोलरहित होने से
किज्ज
सिद्ध किया जाता है
इसको
समझकर
जाणेविणु सोलु परिपालिज्जए
(इ.)2/1 स (जाण+ एविणु) संकृ (सील) 1/1 (परिपाल+ इज्ज) व कर्म 3/I सक (मा) 8/1 अव्यय (महासइ) 8/1
शील पालन किया जाता है माता
महासह णं .
हे महासती
अव्यय
है
लाहु रिणयंतिहे
अव्यय (लाह) 1/1 (रिणय →णियंत→णियंती)26/11 (हला) 8/1 [(मूल)-(छेअ) 1/1] (तुम्ह) 6/1 स (हो) भवि 3/1 अक
लाभ देखते हुए हे सखी प्राधार का नाम आपका हो जायगर
मूलछेउ
होस
००
अध्यय (फिट्ट) व 3/1 अक
फिट्टई
नहीं दूर होता है
अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त शेष स्वरान्त धातुओं में अ (य) विकल्प से जूड़ता है, अभिनव प्राकृत
व्याकरण, पृष्ठ 265 । 2. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[ 121
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org