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पाठ-8
महापुराण
सन्धि-17
17.7
11. छुडु-छुडु
कारणि वसुमइहि' सेण्णई जाम हणंति परोप्पर अंतरि
अव्यय (कारण) 3/1 (वसुमइ) 6/1 (सेण्ण) 1/2 अव्यय (हण) व 3/2 सक (परोप्पर) 2/1 दि (अन्तर) 7/1 अव्यय (पइट्ठ) भूकृ 1/2 अनि अव्यय (मंति) 1/2 (चव) व 3/2 सक (समुब्भ+इवि) संकृ I(रिणय) बि-(कर) 2/1]
अति शीघ प्रयोजन से धरती के सेनाएं ज्योंही प्रहार करती है एक दूसरे पर बीच में तब हो (त्योंहो) प्रविष्ट हुए वहाँ मंत्री कहते हैं (कहा) ऊंचा करके अपना हाथ
ताम
तहि मंति चवंति समुग्भिवि णियकर
17.8
बिहि बलहं. সন্নি
दोनों सेनाओं के बीच में
जो
(बि3) 6/1 (बल) 612 (मज्झ) 7/1 (ज) 1/1 सवि (मुय) व 3/1 सक (बाण) 2/2 (त) 4/1 स (हो) भवि 3/1 अक
मुयद बारण
छोड़ता है (छोड़ेगा)
बाण
उसके लिए होगी
होस
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 144 । 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1571 3. एकवचन का बहुवचन अर्थ में प्रयोग हुआ है।
अपभ्रंश काव्य सोरम ]
[
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