________________
संसारसमुद्दि हराबियउ जोयंतु
[(संसार)-(समुद्द)7/1] (हराविय→हरावियअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (जोय→जोयंत) वकृ 1/I अव्यय अव्यय (लह) व 1/1 सक (अम्ह) 1/1 स
संसार समुद्र में हराया गया देखता हुभा (खोजता हुआ) किस प्रकार फिर प्राप्त करता हूँ (पाऊंगा)
केम
पुणु
लहमि
अपभ्रंश काव्य सौरम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org