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नियवि करहिं सिंह ताडइ
(निय + अवि) संक (कर) 3/2 (सिर) 2/1 (ताड) व 3/1 सक
देखकर हाथों से सिर पीटता है ।
21. अच्छउ
रयरगसमूह सरूवउ
नाने दो रत्नसमूह को सौन्दर्य-युक्त
(अच्छ) विधि 3/1 सक [(रयण)-(समूह) 2/1] (सरुवअ) 2/1 वि 'अ' स्वाथिक (त) 1/1 सवि अव्यय (विट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (मूल) 7/1 (ज) 1/1 सवि (रूवअ) 1/1
वि विणठ्ठ
भी
नष्ट हो गया
मूल में
जो
नो
रूवउ
रुपया
स्वाधीन लक्ष्मी को
नहीं
मोगता है इच्छा करता है
22. साहीगलच्छि
नउ भुंजइ महइ समग्गल सग्गदिहि संखिरिपहि जेम बरइत्तहो करे लग्गेसइ सुण्णनिहि
[(साहीण) वि-(लच्छी) 2/1] अव्यय (भुंज) व 3/1 सक (मह) व 3/1 सक (समग्गल) 2/1 वि [(सग्ग)-(दिहि)12/1J (संखिणि) 6/1 अव्यय (वरइत्त) 6/1 (कर) 7/1 (लग्ग) भवि 3/1 अक (सुष्ण)-(निहि) 1/1]
मोक्ष सुख को (को) संखिणी के जिस प्रकार दूल्हे के हाथ में लगेगी शून्यनिधि
9.11
1.
उसको
त निसुणेविं
सुनकर
कुमार
बुच्चइ विसु साहीण
(त) 2/1 स (निसुण+एवि) संक (कुमार) 3/1 (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि (विस) 1/1 (साहीण) 1/1 वि अव्यय
कुमार के द्वारा कहा जाता है (कहा गया) विष अपने पास क्या
1. दिहि-सुख ।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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