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करिरयरण्इं ढोएसइ ध्रुव परउररयणई
[(करि)-(रयण) 2/2] (ढुक्क→ढोअ) भवि 3/1 सक (दे) क्रिवि [(णर)-(उर)-(रयण) 2/2]
हायोरूपी रत्नों को भेंट करेगा निश्चित रूप से मनुष्य के छातीरूपी रत्नों को
10. संताण
कुलक्कम गुरुकहिउ खत्तधम्म
णउ
वुझाइ मज्जायविवज्जिउ सामरिसु प्रवसें दाइउ जुज्झइ
(संताण) 2/1 (कुलक्कम) 2/1 [(गुरु)-(कह→कहिअ) भूकृ 2/1] [(खत्त)-(धम्म) 2/1] अव्यय (वुज्झ) व 3/1 सक [(मज्जा -य)-(विवज्जिअ) भूक 1/1 अनि] (सामरिस) 1/1 वि (अवस) 3/1 क्रिवि (दाइअ) 1/1 (जुज्झ) व 3/1 सक
वंश कुलाचार गुरु के द्वारा कथित क्षत्रिय धर्म को नहीं समझता है मर्यादारहित ईर्ष्यालु अवश्य ही समान गोत्रीय युद्ध करता है (करेगा)
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। अपभ्रंश काव्य सौरभ
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