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3.
जो बलवंतु चोर सो रापन
जो बलवान चोर
(ज) 1/1 सवि (बलवंत) 1/1 वि (चोर) 1/1 (त) 1/1 सवि (राणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (गिब्बल) 1/1 वि अव्यय (कि) व कर्म 3/1 सक (णिप्राणअ) 1/I वि
णिब्बलु
वह राजा निर्बल फिर किया जाता है निष्पारण
पुणु
किज्ज णिप्राण
छीना जाता है पशु का पशु के द्वारा
4. हिप्पइ
मृगह मृगण जि प्रामिसु हिप्पड़ मणुयह मणुएण
(हिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि (मृग) 6/1 (मृग) 3/1 अव्यय (आमिस) 1/1 (हिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि (मणुय) 6/1 (मणुअ) 3/1 अव्यय (वस) 1/1
मांस छीना जाता है मनुष्य का मनुष्य के द्वारा
वसु
प्रभुत्व
5. रक्खाकंखइ
रएप्पिणु
[(रक्खा)-(कंखा→कखाए→कंखाइ)3/1] (जूह→वूह) 2/1 (रअ) संकृ (एक्क) 6/1 वि परसर्ग (आरणा) 1/1 (लअ) संक
रक्षा की इच्छा से व्यूह रचकर एककी सम्बन्धार्थक प्राज्ञा
केरी प्रारण लएप्पिणु
लेकर
6.
ते णिवसंति तिलोइ गविट्ठउ
(त) 1/2 सवि (णिवस) व 3/2 अक (तिलोअ) 7/1 (गविट्ठअ) भूक 1/1 अनि (सीह) 6/1
सीहह
निवास करते हैं त्रिलोक में खोज किया हमा सिंह का सम्बन्धार्थक समूह
केरउ
परसर्ग
बंदु
(वंद) 1/1 अव्यय (दिट्ठअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
नहीं
विट्ठउ
देखा गया
7. मारणभंगि
[(माण)-(भंग) 7/1]
मान के भंग होने पर
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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