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करे तुल-चाउल-विस-जलजलणहं पञ्चह एक्कु
(कर) विधि 2/1 सक [(तुल)-(चाउल)-(विस)-(जल)-(जलण) तिल, चावल, विष, जल, 6/2]
अग्नि में से (पञ्च) 6/2 वि
पांचों में से . (एक्क) 2/1 वि अव्यय (दिव्व) 2/1 वि
आरोप की शुद्धि के लिए को.
जानेवाली परीक्षा को (धर) विधि 2/1 सक
धारण करें
दिषु
83.5
1.
तं णिसुणेवि रहवई परिओसिउ एव
(त) 2/I सवि (गिसुण+एवि) संकृ (रहुवइ) 1/1 (परिओस ) भूकृ 1 अव्यय (हो) विधि 3/1 अक (हक्कारअ) 1/1 (पेस ->पेसिअ) भूकृ 1/
उसको सुनकर रघुपति (राम) संतुष्ट हुए इसी प्रकार
होउ
होवे
हक्कार पेसिउ
हरकारा (खुलानेवाला) भेजा गया
9.
चढ़ें
चडु पुप्फ-विमाणे भडारिए मिलु पुत्तह! पइ-देवरहें। सहुँ
(चड) विधि 2/1 सक
(पुष्फ)-(विमाण) 7/1] (भडारिआ) 8/1 अनि (मिल) विधि 2/1 सक (पुत्त) 6/2 [(पइ)-(देवर) 6/23 अव्यय (अच्छ) 43/2 अक (मज्झ)7/1 (परिट्टिय) भूक 1/1 अनि (पिहिमि)1/1 अव्यय [(चउ)-(सायर) 6/2]
पुष्पक विमान पर हे पूजनीया मिलो पुत्रों का (पुत्रों को) पति और देवरों को साथ रहती है मध्य में स्थित पृथ्वी जिस प्रकार चारों सागरों के
अच्छहिँ
मज्झे परिट्रिय पिहिमि
चउ-सायरहें
1 कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण
3-134)।
2. यहाँ बहुवचन का एकवचन के अर्थ में प्रयोग किया गया है।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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