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गरेसहो
राजा को (के लिए)
यदि
नई संसारकै
(णरेस) 4/1 अव्यय (संसार) 5/1 (तार) व 3/1 अक
संसार से पार लगाता है
तारइ
16.8
1. पुणरवि
तेहि गहिरयं सवणमहुरयं एरिसं पउत्तं प्राणापसरधारणे
अव्यय (त) 3/2 स (गहिर-य) 1/1 वि 'य' स्वार्थिक [(सवण)-(महुर-य) 1/1 वि] (एरिस) 1/1 वि (पउत्त) भूक 1/1 अनि [ (आरणा)-(पसर)-(धारण1) 7/1]
फिर उनके द्वारा महत्वपूर्ण सुनने में मधुर इस प्रकार कहा गया (कहे गये) आज्ञा-प्रसार के पालन करने के प्रयोजन से पृथ्वी के निमित्त से प्रणाम करना (करने के लिए)
धरणिकारणे परराविउं
[(धरणि)-(कारण) 7/1] (पणव) हेकृ अव्यय (जुत्त) भूकृ 1/1 अनि
नहीं
जुत्तं
उपयुक्त
शरीर-खण्ड को भू-खण्ड को, पृथ्वी को महत्व देकर
पिडिखंडु महिखंडु महेप्पिण किह पणविज्जइ माणु मुएप्पिणु
[(पिंडि)-(खंड) 2/1] [(महि)-(खंड) 2/1] (मह+एप्पिणु) संकृ अव्यय (पणव+ इज्ज) व कर्म 3/1 सक (माण) ./1 (मुअ + एप्पिणु) संकृ
क्यों
प्रणाम किया जाता है (जाए) आत्मसम्मान को छोड़कर
3. बक्कलणिवसणु
कंदरमंदिर वणहलभोयणु वर
[(वक्कल)-(णिवसण) 1/1] [(कंदर)-(मंदिर) 1/1] [(वण)-(हल)-(भोयण) 1/1] (वर) 1/1 वि अव्यय (सुन्दर) 1/1 वि
वृक्ष की छाल का वस्त्र गुफा में घर जंगल के फलों का भोजन श्रेष्ठ पादपूरक अच्छा
सुन्दर
4. वर
(वर) 1/1वि
श्रेष्ठ
1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-135) ।
72 ]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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