________________
10.
खज्जइ पलयकालसदूलें उज्झइ दुक्खयासगजालें
(खज्ज) व कर्म 3/1 सक अनि [(पलय)-(काल)-(सदूल) 3/1] (डज्झइ) व कर्म 3/J सक अनि [(दुक्ख)-(हुयासण)-(जाल) 3/1]
खाया जाता है प्रलयकालरूपी बाघ के द्वारा जलाया जाता है दुःखरूपी अग्नि की ज्वाला के
द्वारा
11. मंजरु
कुंजरु महिसउ
बिलाव हाथी
भैसा
मंडलु
(मंजर) 1/1 (कुंजर) 1/1 (महिस-अ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (मंडल) 1/1 (दे) (हो) व 3/1 अक (जीअ) 1/1 (मक्कड) 1/1 (माहुंडल) 1/1 (दे)
कुत्ता
होता है
जीव
होइ जीउ मक्कडु माहुंडलु
बन्दर सर्प
12. केलासहु
जाइवि तवयरणु वाएं भासिउ किज्जइ जेणेह
(केलास1) 6/1
कैलाश पर्वत को (पर) (जाअ) संकृ
जाकर [(तव)-(यरण) 1/1]
तप का आचरण (ताअ) 3/1
पिता के द्वारा (भास→भासिअ) भूक 1/1
कहा हुआ (बताया हुआ) (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि
किया जाता है [(जेण) + (इह)] जेण (ज) 3/1 स जिसके द्वारा इह =अव्यय
यहाँ [(सु)-(दूसह)-(तावयर→(स्त्री)तावयरि)1/1] अत्यन्त दुसह्य-दुःखकारी (संसारिणी2) 6/1 वि
संसारी जीव के द्वारा (तिसा) 1/1
प्यास (छिज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि
छेदी जाती है
सुदूसहतावयरि संसारिणि तिस छिज्जइ
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है, (हे.प्रा.व्यो. 3-134)। 2. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है, (हे. प्रा. व्या. 3-134)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[ 77
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org