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तहिा
जि
णिम्मल कालउ
(त) 6/ स अव्यय (पहा) 1/1 (णिम्मला) 1/1 वि (कालअ) 1/1 वि 'अ' स्वाधिक (मेह) 1/1 (त) 6/1 स अव्यय (तडि) 1/1 (उज्जल) 1/1 वि
उससे पादपूरक प्रभा निर्मल काला बादल, मेघ उससे पादपूरक बिजली श्वेत/उज्ज्वल
तहि
तडि उज्जल
_ उवलु अपुज्जु
केरा वि ठिप्प
(उवल) 1/1 (अपुज्ज) 1/1वि अव्यय (क):/1 स अव्यय (छिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि (त) 6/1 स अव्यय (पडिमा) 1/1 (चन्दण) 3/1 (विलिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि
पत्थर अपूज्य नहीं किसी के द्वारा भी छुआ जाता है उससे
तहि।
जि पडिम चन्दगण विलिप्पड़
प्रतिमा चन्दन से लोपी जाती है
धुज्जइ पाउ
पंकु जइ
लग्गइ कमलमाल पुणु जिणहो वलग्गइ
(धुज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि (पाअ) 1/1 (पङ्क) 1/1 अव्यय (लग्ग) व 3/1 अक [(कमल)-(माला) 1/1] अव्यय (जिण) 6/1 (बलगमा) व 3/1 अक
धोया जाता पाँव कीचड़ यदि लगता है कमल को माला किन्तु जिनेन्द्र के चढती है
दीवउ होइ सहावे काल
(दीवअ) 1/1 (हो) व 3/1 अक (सहाव) 3/1 (कालअ) 1/1 वि 'अ' स्वाथिक
दीपक होता है स्वभाव से काला
1. कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पंचमी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134)।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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