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पाउ
पाविदृहों
पसरइ
जेम
5.
धम्मु धम्म हो
4. पसरइ
जेम
जोह
मयवाहहो
पसरइ
जेम
कित्ति
जगणा
पसरई
जेम
चिन्त
धरण- हीणहो
पसरइ
जेम कित्ति
सु-कुलीहो
6. पसरइ
जेम
सट्टु
सुर-तूरहो
पसरइ
जेम
रासि
हे
सूरहो
7. पसर
जेम
दवग्गि
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
(are) 1/1
( पावि + इट्ठ 1
( पसर) व 3 / 1
अव्यय
( धम्म) 1 / 1
( धम्म + इठ्ठ 1 धम्मिट्ठ ) 6 / 1 वि
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पाविट्ठ ) 6 / 1 वि
अक
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
(Groer) 1/1
[ ( मय) - (वाह ) 6 / 1 वि]
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
(fafer) 1/1
[ (जग) - ( णाह ) 6 / 1]
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यध
(farat) 1/1
[ ( धण ) - ( हीण ) 6 / 1]
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
(ffer) 1/1
( सु- कुलीन) 6/1
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
(सद्द) 1 / 1
[(सुर) - (तूर) 6/1]
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
( रासि ) 1/2
(ह) 7/1
( सूर) 6/1
( पसर) व 3 / 1 अक
अव्यय
(af) 1/1
पाप
अत्यन्त पापी का फैलता है।
जिस प्रकार
धर्म
अत्यन्त धार्मिक का
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फैलता है
जिस प्रकार
ज्योत्स्ना (प्रकाश)
मृग को धारण करनेवाले का
फैलती है
जिस प्रकार
महिमा
जिनदेव को
फैलती है (उभरती है)
जिस प्रकार
चिन्ता
धन से रहित को
फैलता है
जिस प्रकार
यश
प्रत्यधिक शालीन कर
फैलता है
जिस प्रकार
1.
इट्ठ = इष्ट (तुलनात्मक विशेषण के लिए लगाया जाता है) अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 261 ।
शब्द
देवों की तुरही (वाद्य) का
फैलती है ( हैं )
जिस प्रकार
किरणें
श्राकाश में
सूर्य की
फैलती है जिस प्रकार
दावाग्नि
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