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3. दिट्टई
स-मउड-सिरई पलोट्टई
(दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि [(स-मउड) वि-(सिर)1/2] (पलोट्ट) भूकृ 1/2 अनि अव्यय (स-केसर) 1/2 वि (कन्दोट्ट) 1/2
देखे गए मुकुटसहित सिर जमीन पर गिरे हुए मानो पराग-सहित कमल
स-केसराई कन्दोट्टई
4. दिटुइँ
मालयलई पायडियई प्रद्धयन्द-विम्बाई
(दिट्ठ) मूक 1/2 अनि (भालयल) 1/2 (पायड->पायडिय) भूकृ 1/2 [(अद्धयन्द)-(विम्व) 1/2] अव्यय (पड->पडिय) भूकृ 1/2
देखे गए भाल,ललाट खुले हुए अर्द्धचन्द्र के प्रतिबिम्ब
मानो
पडियई
देखे गए
5. विदुई
मणि-कुण्डलई स-तेय
(दि8) भूकृ 1/2 अनि [(मणि)-(कुण्डल) 1/2] (स-तेय) 1/2 वि अव्यय [(खय) भूकृ-(रवि)-(मण्डल) 1/2] (अणेय) 1/2 वि
मरिणयों से (बने हुए) कुण्डल कान्ति-युक्त मानो गिरे हुए, रवि-चक
खय-रवि-मण्डलई प्रमेय
अनेक
देखी गई
दिट्टर भउहउ भिडि-करालउ
भौंहें
(दिट्ठ→(स्त्री) दिट्ठा) भूक 1/2 अनि (भउहा) 1/2 [(भिडि)-(करालअ) 1/1 वि 'अ' स्वा.] अव्यय [(पलय)+(अग्गि)+ (सिहउ)] [(पलय)-(अग्गि)-(सिहा) 1/2] [(धूम) + (आलउ)] [[(धूम)-(आलअ) 1/1] वि]
पलयम्गि-सिहज
भौंह के विकार से भयंकर मानो प्रलय की प्राग की ज्वालाएं धुएँ के प्राश्रयवाली
धूमालउ
दिट्टई दोह-विसालई णेत्तई मिहुणा
(दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि [( दीह) वि-(विसाल) 1/2 वि] (णेत्त) 1/2 (मिहुण) 1/2 अव्यय [(आमरण)+ (आसत्तइँ)] [(आमरण) - (आसत्त) भूकृ 1/2 अनि]
देखे गए लम्बे और चौड़े नेत्र स्त्री-पुरुष के जोड़े मानो मृत्यु तक प्रासक्त
आमरणाससई
1.
कभी-कभी समास के अन्त में 'यल' लगाने से अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
48 ]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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