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रोने इसलिए
वि
लग्ग
लगे
सज्जण
(रड) 7/1 अव्यय (लग्ग) भूकृ 1/2 अनि अव्यय (सज्जण) 1/2 अव्यय (णच्च) ब 3/2 अक (मोर) 1/2 (खल) 1/2 वि (दुज्जण) 1/2 वि
को तरह सज्जनों की तरह नाचते हैं (नाचे) मोर शरारती
णच्चन्ति
मोर
दुष्टों
3.
पूरन्ति
सरित अक्कन्वें
अव्यय (पूर) व 3/2 सक (सरि) 1/2 (अक्कन्द) 3/1 अव्यय (कइ) 1/2 (किलिकिल) व 3/2 अक (आणन्द) 3/1
मानो भरती हैं (मरा) नदियों ने रोने के कारण मानो कवि प्रसन्न होते हैं (हुए) आनन्द से
का .किलिकिलन्ति आणन्में
विमुक्क उग्रोसें।
अव्यय (परहुय) 1/2 (विमुक्क) भूकृ 1/2 अनि (उग्घोस) 3/1 अव्यय (वरहिण) 1/2 (लव) व 3/2 सक (परिओस) 3/1
मानो कोयलें स्वतन्त्र की गई ऊंची आवाज में मानो मोर बोलते हैं (बोले) सन्तोष से
वरहिण लवन्ति परिओसें
5.
णं
सरवर बहु-प्रंसु-अलोहिलय
मानो बड़े तालाब विपुल, आँसूरूपी, जल से, भरे
अव्यय [(सर)-(वर) 1/2 वि] [(वहु) वि- (अंसु)- (जल)- (उल्लिय) 1/2 वि] अव्यय [ (गिरि)-(वर) 1/2 वि]
मानो
गिरिवर
बड़े पर्वत
1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण
3-137)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[
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