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रत्न ले लिया गया (और) सब (कलशों को) खाली करके (वहाँ) (ही) छोड़ दिया गया। [20] किसी दूसरे समय जब (वह) (कलशों को) उघाड़ता है (तो) खाली (कलशों) को (ही) देखकर हाथों से (अपना) सिर पीटता है। [21] (और कहता है)-सौन्दर्य-युक्त रत्न-समूह को (तो) जाने दो, (किन्तु दुःख है कि) जो रुपया मूल में था वह भी नष्ट हो गया।
पत्ता -- (जो) स्वाधीन लक्ष्मी को (तो) नहीं भोगता है (किन्तु) पूर्ण मोक्ष-सुख की इच्छा करता है, (उस) दूल्हे (जंबूस्वामी) के हाथों में शून्य निधि (ही) लगेगी, जिस प्रकार संखिणी के (हाथ में शून्य निधि ही लगी)।
9.11
[1] उसको सुनकर कुमार (जंबूस्वामी) के द्वारा कहा गया--अपने पास (यदि) विष (है) (तो) क्या (वह) शीघ्र नहीं छोड़ दिया जाता है ? [2] रात्रि में नगर में (एक) गीदड़ प्रविष्ट हुआ (उसके द्वारा) मरा हुआ बैल मोहल्ले के मुख पर (ही) देखा गया। [3] दाँतों के समूह से (बैल को) खाते रहने के कारण (उसका दाँत-समूह) ढीला हो गया। (और) (खाने में लीन होने के कारण) रात्रि की समाप्ति की सीमा (उसके द्वारा) नहीं जानी गई । [4] प्रभात होने पर बैल के मांस में मोहित (गीदड़) मनुष्यों के आवागमन के कोलाहल से होश में आया । [5] (मनुष्यों को देखकर) (वह) भय से कंपनशील (हुआ) (पर) (नगर से) निकलकर (भागने के लिए) समर्थ नहीं हुआ । (तो) (मन में) योजना विचारी गई (जिसके अनुसार) (वह) (जमीन पर) पड़कर निश्चेष्ट हुा । [6] (यह ठीक है कि) (मैं) अपने को मरा हुआ बनकर दिखलाता हूँ। फिर रात्रि आने पर अवश्य ही वन को जाऊँगा। [7-8] दिन (होने) पर नगर के लोगों द्वारा मिलकर (वह) देखा गया । बढ़े हुए रोग के कारण एक मनुष्य के द्वारा औषधि के लिए (निमित्त) (उसकी) कान-सहित पूंछ काट ली गई । गीदड़ ने सोचा (कि) आज भी (अभी भी) भाग्यशाली (हूँ)। [9] पूंछरहित और बिना कानों से (मैं) जी लूंगा। यदि केवल एक बार पुण्यों से छूट जाऊँ । [10] (तभी) एक अन्य ( दूसरा) कामुक मनुष्य बोला- (मैं) दाँत लेता हूँ, (इससे) प्रिया के मन को वश में करूंगा। [11] (वह) पत्थर लेकर दाँत तोड़ता है। गीदड़ ने (यह) जानकर मन में खेद किया। [12] (उसने सोचा) (कि जब) पूंछ और कान काटे गए (तो) ( मेरे द्वारा) (वह घटना) तुच्छ मानी गई । (किन्तु) दाँतों के बिना (तो) जीने की उम्मीद कठिन (है) । [13] (ऐसा) सोचकर (वह) म्लान (गीदड़) प्राणोंसहित वेग से भागा, (तो) सिंह के समान (खूखार) कुत्ते के द्वारा (वह) मुंह ( कंठ) में पकड़ लिया गया [14] और मार दिया गया । मार डालने के कारण उस समय (वह) कुत्तों के समूह के द्वारा मिल कर खा लिया गया, (इस बात को) (तुम सब) समझो । [15] इस प्रकार जो मूढ़ (व्यक्ति (इन्द्रिय-) विषयों में अन्धा रहता है, वह नाश को पाता है । (इसमें) क्या सन्देह ( रह जाता है ?
अपभ्रंश काव्य सौरभ 1
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