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(रज्ज) 2/1
अव्यय
राज्य को नहीं भोगता हूँ (भोगूगा)
मुजमि
(भुज) व 1/1 सक
राज्य असार
असारु वार संसारहो
संसार का
(रज्ज) 1/1 (असार) 1/1 वि (वार) 1/1 (संसार) 6/1 (रज्ज) 1/1 क्रिवि (णी) व 3/1 सक (तम्वार)16/1
खणेण
क्षण भर में ले जाता है (पहुँचा देता है) विनाश को
तम्बारहो
भयङ्कर इह-पर-लोयहो
(रज्ज) 1/1 (भयङ्कर) 1/1 वि [(इह) वि -(पर) वि - (लोय) 4/1]
राज्य दुःखजनक इस (लोक में) और परलोक में राज्य से जाया जाता है नित्य-निगोद के लिए
रज्जें गम्मइ णिच्च-रिणगोयहो
(रज्ज) 3/1 (गम्मइ) व कर्म 3/1 सक अनि [(णिच्च)-(णिगोय) 4/1]
राज्य के द्वारा
रज्जें होउ होउ
होवे
मह
(रज्ज) 3/1 (हो) विधि 3/1 अक (हो) भूकृ1/1 (महु) 6/1 (सरियअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (सुन्दर) 1/1 वि अव्यय अव्यय (तुम्ह) 3/1 स (परिहर→परिहरिय→परिहरियअ) भूक 1/1 'अ' स्वा.
हुआ गया मधु के समान रुचिकर
सरियउ सुन्दरु
कि
क्यों
परिहरियउ
तुम्हारे द्वारा छोड़ दिया गया
अकाजु
(रज्ज) 1/1 (अकज्ज) 1/1 वि (कह→कहिअ) भूकृ 1/1 [(मुणि)-(छेय) 3/2वि
राज्य नहीं करने योग्य कहा गया निर्मल मुनियों द्वारा
कहिउ मुरिण-छेयहि
(दे)]
1. कमी-कभी द्वितीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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