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ह
करेवउ पच्छले
अव्यय (रज्ज) 1/1 (कर+एवउ) विधिकृ 1/1 (पच्छल)7/1
अव्यय [(तव)-(चरण) 1/1] (चर+एवउ) विधिकृ 1/1
किया जाना चाहिए पिछले भाग में
पुण
तव-चरणु चरेवउ
तप का आचरण किया जाना चाहिए
एम
इस प्रकार
भणेप्पिण
राउ
सच्चु
समप्पेवि भज्जहे भरहहो वन्धेवि पट्टु
अव्यय (भण+एप्पिणु) संकृ (राअ) 1/1 (सच्च) 2/1 (समप्प+एवि) संकृ (भज्जा ) 6/1 (भरह) 6/1 (वन्ध+एवि) संकृ (पट्ट) 2/1 (दसरह) 1/1 (गअ) भूकृ 1/1 अनि (पन्वज्जा) 4/1
कहकर राजा वचन को समर्पित करके (पूरा करके पत्नी के भरत के (को) बांधकर
दसरहु
गउ
दशरथ चले गये प्रव्रज्या के लिए
पव्वज्जहे
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। अपभ्रंश काव्य सौरभ
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