________________
मणे
मन में प्रीष्म-काल
उण्हालए
(मण) 7/1 [(उण्ह) + (आलए)] [(उण्ह)-(आलअ) 7/1 'अ' स्वा.] (धरणि) 1/1 अव्यय (तप्प) व 3/1 अक
धरणि
धरती . जैसे तपती है
तप्पड़
22.8
णरिन्दस्स सोऊण पव्वज्ज-यज्ज
(णरिन्द) 6/1
राजा (दशरथ) के (सोऊण) संकृ अनि
सुनकर [(पब्वज्जा (स्त्री)→पव्वज्ज)
संन्यास-विधान को (यज्ज)2/1] [(म) + (रामा)+ (अहिरामस्स)] पत्नीसहित, [(स) वि-(रामा)-(अहिराम) 4/I वि] आकर्षक (राम) 4/1
राम के लिए (रज्ज) 2/1
राज्य को
स-रामाहिरामस्स
रामस्स
ससा दोरगरायस्स भग्गाणुराया
(ससा) 1/1
बहिन (दोणराय) 6/1
द्रोणराजा की [(भग्ग) + (अणुराया)]
टूट गया, स्नेह [(भग्ग) भूक अनि-(अणुराया) 1/I वि] [[(तुलाकोडि)-(कन्ति→कन्ती)- नपुरों से, (लया)-(लिद्ध) भूकृ अनि
कान्तिसहित, (पाय) 1/2] वि]
लतारूपी, लिपटे हए, पर
तुलाकोडि-कन्तीलयालिद्ध-पाया
6.
गया केक्कया जत्थ अत्थारण-मग्गो परिन्दो सुरिन्दो
गयी कैकेयी जहाँ सभास्थान का पथ
(गय→(स्त्री) गया) भूकृ 1/1 अनि (केक्कया) 1/1 अव्यय [(अत्थाण)-(मग्ग) 1/1] (णरिन्द) 1/1 (सुरिन्द) 1/1 अव्यय (पीढ) 2/1 (वलग्ग) 1/1 वि (दे)
राजा
की तरह
पीढ़1 वलग्गो
प्रासन पर स्थित
1. कभी-कभी द्वितीया का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर होता है (हे.प्रा.व्या. 3-137)।
14 1
[ अपभ्रंश काव्य सौरम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org