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दुहिया
पुत्री
वि
दुहिय
माया वि माय सम-भाउ लेन्ति किर तेरण भाय
(दुहिया) 1/1 अव्यय (दुहिय→(स्त्री) दुहिया) 1/1 वि। (माया) 1/1 अव्यय (माया) 1/1 [(सम) वि-(भाअ)2/1] (ले) व 3/2 सक अव्यय अव्यय (माय) 1/2
पावपूरक दुःखी करनेवाली मोह-जाल पावपूरक माता समान-हिस्सा लेते हैं
इसलिए
9.
आयर्ड
अवर
इनको दूसरे (अन्य) पादपूरक
भी
मि सव्वई राहवहो समप्पेवि अप्पुणु
(आय) 2/2 सवि (अवर) 2/2 वि अव्यय अव्यय (सव्व) 2/2 सवि (राहव) 4/1 (समप्प+एवि) संकृ (अप्पुण) 1/1 स (तअ) 2/1 (कर) व 1/1 सक (थिअ) भूकृ 1/1 अनि (दसरह) 1/ अव्यय (वियप्प+एवि) संकृ
सबको राम के लिए (को) देकर स्वयं तप करता हूं (कहंगा) स्थिर हुए दशरथ इस प्रकार विचार करके
करमि थिउ दसरह
वियप्पेवि
22.7
बसरह प्रण-विणे किर रामहो
(दसरह) 1/1 [(अण्ण) वि-(दिण) 7/1] अव्यय (राम) 4/1 (रज्ज) 2/1 (समप्प) व 3/1 सक (केक्कया) 1/1 अव्यय
दशरथ दूसरे दिन पादपूरक राम के लिए (को) राज्य देता है (देते हैं) केकय देश के राजा की कन्या
समप्पड़ केक्कय ताव
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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