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________________ 8 दुहिया पुत्री वि दुहिय माया वि माय सम-भाउ लेन्ति किर तेरण भाय (दुहिया) 1/1 अव्यय (दुहिय→(स्त्री) दुहिया) 1/1 वि। (माया) 1/1 अव्यय (माया) 1/1 [(सम) वि-(भाअ)2/1] (ले) व 3/2 सक अव्यय अव्यय (माय) 1/2 पावपूरक दुःखी करनेवाली मोह-जाल पावपूरक माता समान-हिस्सा लेते हैं इसलिए 9. आयर्ड अवर इनको दूसरे (अन्य) पादपूरक भी मि सव्वई राहवहो समप्पेवि अप्पुणु (आय) 2/2 सवि (अवर) 2/2 वि अव्यय अव्यय (सव्व) 2/2 सवि (राहव) 4/1 (समप्प+एवि) संकृ (अप्पुण) 1/1 स (तअ) 2/1 (कर) व 1/1 सक (थिअ) भूकृ 1/1 अनि (दसरह) 1/ अव्यय (वियप्प+एवि) संकृ सबको राम के लिए (को) देकर स्वयं तप करता हूं (कहंगा) स्थिर हुए दशरथ इस प्रकार विचार करके करमि थिउ दसरह वियप्पेवि 22.7 बसरह प्रण-विणे किर रामहो (दसरह) 1/1 [(अण्ण) वि-(दिण) 7/1] अव्यय (राम) 4/1 (रज्ज) 2/1 (समप्प) व 3/1 सक (केक्कया) 1/1 अव्यय दशरथ दूसरे दिन पादपूरक राम के लिए (को) राज्य देता है (देते हैं) केकय देश के राजा की कन्या समप्पड़ केक्कय ताव अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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