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6. जीवाज
7.
1.
2.
जर मरण हैं।
किङ्कर
किं
करन्ति
3.
4.
མྦྷ མསྶལླལླབྲཱམྦྷཝཝནྟཾ ཎྜཱ
ह
सन्दरण
लण
pe.ttrreteer
तणु
जे
यहो
जाइ
धणु
धणु
जि
गुणेण
वि
वंकु
थाइ
12 ]
[ ( जरा-जर) - (मरण ) 6/112
( किङ्कर) 1/2
( क ) 1 / 1 सवि
(कर) व 3/2 सक
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[ (जीव ) + (आउ ) ] [ (जीव ) - (आउ ) 1 / 1]
(वाउ) 1/1
( हय) 1/2
( हय) भूकृ 1 / 2 अनि
( वराय) 1 / 2 वि ( सन्दण ) 1/2
( सन्दण ) 1/2 वि
( गय) भूकृ 1 / 2 अनि
( गय) भूकृ 1 / 2 अनि
अव्यय
[ (ण) + (आय) ] ण (अव्यय) आय (आय) भूकृ 1/2 अनि
(तणु) 1/1
( तण) 1 / 1
अव्यय
( खणद्ध ) 3 / 1
( वय ) 6/1
(जा) व 3 / 1 सक
( धण ) 1 / 1
( धणु ) 1 / 1
अव्यय
( गुण ) 3 / 1
अव्यय
(व) 1 / 1 वि
( था) व 3 / 1 अक
बुढ़ापे और मरणके अवसर पर नौकर-चाकर
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क्या
करते हैं
जीव की आयु
हवा
घोड़े
मारे गए
बेचारे
रथ
टूटनेवाले
मरे हुए
गए
ही
नहीं,
लौटे
शरीर
तृण
हो
प्राधे क्षण में
क्षय को
प्राप्त होता है
धन
श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 ।
कभी-कभी षष्ठी का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134),
कभी-कभी सप्तमी के अर्थ में तृतीया प्रयुक्त होती है (हे. प्रा. व्या. 3-137 ) ।
कभी-कभी षष्ठी द्वितीया के अर्थ में प्रयुक्त होती है (हे. प्रा. व्या. 3-134 ) ।
धनुष
पादपूरक
प्रत्यञ्चा से
पादपूरक
बांका
रहता है
अपभ्रश काव्य सौरभ
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