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[18] आत्मा मनरहित, इन्द्रिय (समूह से) रहित, मूर्ति-रहित (रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-रहित), ज्ञानमय और चैतन्य स्वरूप ( है ), (यह) इन्द्रियों का विषय नहीं ( है ) । (ग्रात्मा का) यह लक्षण बताया गया ( है ) ।
[19] जो मन (व्यक्ति) संसार, शरीर और भोगों से उदासीन हुआ (परम ) श्रात्मा का ध्यान करता है, उसकी घनी संसाररूपी (मानसिक तनावरूपी) बेल नष्ट हो जाती है ।
[20] जो ग्रनादि ( है ), अनन्त (है), (जो) देहरूपी मन्दिर में बसता है, (जिसके केवलज्ञान से चमकता हुआ शरीर ( है ) वह दिव्य आत्मा (ही) परम आत्मा (है) । (यह ) ( बात ) सन्देहरहित ( है ) |
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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