________________
पत्तु
(कञ्चु इ) 1/1
कञ्चुकी अव्यय
नहीं (पत्त) भूकृ 1/1 अनि
पहुँचा . (पहु) 1/1
स्वामी (राजा) (पभण) व 3/1 सक
कहता है [(रहस) + (उच्छलिय)+ (गत्तु)] हर्ष से पुलकित शरीरवाले [[(रहस)-(उच्छल→उन्छलिय) भूकृ-(गत्त) 1/1]वि]
पभणइ रहसुच्छलिय-गत्तु
कहो
कहे काई णियम्विणि मणे विसष्ण
(कह) विधि 2/1 सक अव्यय
क्यों (णियम्विणी) 8/1
हे स्त्री (मण) 7/1
मन में (विसण्ण→(स्त्री)विसण्णा) भूकृ दुःखो 1/1 अनि [(चिर)वि-(चित्तिय) भूकृ 1/1 अनि ] पुरानी चित्रित (भित्ति) 1/1
भीत अव्यय
की तरह (थिय→(स्त्री)थिया) भूक 1/1 अनि स्थिर (विवण्ण→(स्त्री)विवण्णा)1/1 बि निस्तेज
चिर-चित्तिय भित्ति
थिय
5. पणवेप्पिण
बुच्चइ
सुप्पहाए किर
(पणव) संकृ (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि (सुप्पहा) 3/1 (अव्यय) सम्बोधनार्थक (काई) 1/1 सवि (अम्ह) 6/1 स (तणिया) 3/1 वि (कहा) 3/1
प्रणाम करके कहा जाता है सुप्रभा के द्वारा हे प्रभु क्या मेरे सम्बन्धार्थक परसर्ग विशेषण चर्चा से
काई
महु
त्तरिणयए कहाए
6.
जइ
यदि
हउँ
अव्यय (अम्ह) 1/1 से अव्यय [(पाण)+ (बल्लहा)+ (इय)] [(पाण)-(वल्लहा) 1/1]
भी प्राणों से प्यारी
पाणवल्लहिय
। अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org