________________
पाठ-10
सुदंसणचरिउ
- सन्धि -2
2.10
[1] जिस प्रकार आगम में सभी सातों व्यसन समझाए गये (हैं) हे पुत्र ! (तुम) (उनको) सुनो । [2] सर्पादि (प्राणी) यहाँ एक जन्म में (ही) कठिनाई से विचार किए जानेवाले (घोर) दुःख को देते हैं। [3] किन्तु (इन्द्रिय-) विषय करोड़ों जन्मों के अवसर पर दुःख उत्पन्न करते (रहते) हैं । (इसमें)(कोई) सन्देह नहीं है । [4] (इन्द्रिय-) विषयों में लीन रुद्रदत्त दीर्घकाल के लिए नरकरूपी समुद्र में पड़ा। [5-6] जो मूर्ख उत्साहपूर्वक जुम्रा खेलता है, वह (जुना में लीन होने के कारण) रोष से युक्त हुआ माता, बहिन, पत्नी
और पुत्र को कष्ट देता है । [8] जुवा खेलते हुए नल ने और इसी प्रकार युधिष्ठिर ने (भी) कष्ट पाया । [8-9] मांस खाने के कारण अहंकार बढ़ता है उस अहंकार के कारण (वह) मद्य की इच्छा करता है, जुना भी खेलता है (तथा) बहुत सी बुराइयों में गमन (करने लगता है)। [10] (उसका) अपयश फैलता है। उस कारण से उससे निवृत्ति की जानी चाहिए। [11] मांस खाते हुए वरण राक्षस मारा गया (और) (उसने) नरक पाया । [12] मदिरा के कारण नशे में चूर हुपा (मनुष्य) झगड़ा करके प्रिय मित्र को (भी) कष्ट पहुंचाता है। [13] (कभी) (वह) राजमार्ग पर गिर जाता है (तथा) (कभी) (वह) उन्मत्त शरीरवाला (होकर) हाथ को ऊंचा करके नाचता है। [14] मदिरा (पीने) के कारण घमण्डी होते हुए सभी यादव विनाश को प्राप्त हुए। [15] वेश्या सुन्दर वेश दिखाती है (और) पिशाचिनी की तरह खून (के कणों) का घर्षण (करती) (है)। [16] उसके (घर में) (कामक्रीड़ा के लिए) जो रहता है, वह अस्तव्यस्त (व्यक्ति) (मानो) जूठन खाता है। [17] यहाँ (यह उल्लेखनीय है कि) वेश्या में मस्त हुप्रा व्यापारी चारुदत्त धन-रहित हो गया । [18] (धन-रहित होने के कारण) (चारुदत्त को) (अपने यहां से) दूर हटाती हुई (वेश्या) उससे) विमुख (हुई) (और) (उसके द्वारा) (उसके) बाल काट दिए गए (और (उसका) वेश दयनीय बना दिया गया। [19-20] जो वीर होते हैं, चाहे वह शबरों का (समूह) ही हो, वे वन में रहनेवाले मृगों के समूह को, (जो) वन में घास चरते हैं (और केवल) खड़खड़
आवाज सुनकर निश्चित डर जाते हैं, (उनको) नहीं मारते हैं। [21] (उनको) मूर्ख (व्यक्ति) क्यों मारता है ? उनके द्वारा क्या किया गया है ? [22] शिकार का प्रेमी चक्रवर्ती
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
[ 57
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org