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घत्ता-इसको समझकर हे माता ! हे महासती ! (यदि) शील पालन किया जाता है तो लाभ है। (वरना) हे सखो ! (उदाहरणों को) देखते हुए (मेरे द्वारा) (यह) (समझा गया है) (कि) आपके आधार का (ही) नाश हो जायेगा ।
8.9
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[1] इस लोक में श्मशान से गिद्ध दूर नहीं होता है। कमल में घुसा हुआ भौंरा (उससे) दूर नहीं होता है। [2] नारद के तम्बूरे का गीत नहीं छूटता है। ज्ञानी समुदाय (मनुष्यों) का विवेक नष्ट नहीं होता है। [3] दुष्ट स्वभाव दुर्जन से ओझल नहीं होता है। निर्धन के चित्त से चिन्ता समाप्त नहीं होती है। [4] महाधनवान से लोभ नहीं जाता है । यमराज से मारने का भाव दूर नहीं होता है। [5] यौवनवान् से अहंकार नहीं हटता है । प्रेमी में लगा हुआ मन विचलित नहीं होता है। [6] महान् हाथियों का समूह विन्ध्य पर्वत से नीचे नहीं पाता है। सिद्धों का समूह शाश्वत (स्थिति) से रहित नहीं होता है । [7] पापी से पाप का कलंक नहीं छूटता है। कामुक चित्त से कामदेव हटता नहीं है । [8] (इसी प्रकार) (रानी का) जो कदाग्रह (अनैतिक निश्चय) (है) (वह) (उसके) मन से नहीं हटेगा (ऐसा लगता है)। यह ही मौक्तिकदाम छन्द (है)।
घत्ता-अथवा (ऐसा कहें कि) जहां, जिस प्रकार जिस (व्यक्ति) के द्वारा जैसी (घटनाएं) उत्पन्न की जायेंगी, वहाँ (वे) अवश्य ही उसी प्रकार, उस ही व्यक्ति के द्वारा अफेले वैसी ह. सही जायेंगी (इसको टाला नहीं जा सकता है)।
8.32
[1] पाताल में सौ का स्वामी सुप्राप्य (है), काम से पीड़ित (व्यवित) में विरह का संताप स्वाभाविक (है)। [2] नये बादल में जल का प्रवाह सरल (है), हीरे की खान में हीरे की प्राप्ति आसान (है)। [3] कश्मीर में केसरपिंड सुलभ (है), मानसरोवर में कमलों का समूह सुलभ (है)। [4] द्वीपों के अन्दर नाना प्रकार की व्यापारिक वस्तुएँ सुप्राप्य (हैं), पत्थर में सोने का अंश सुलभ (है)। [5] मलय पर्वत से सुगन्ध-युक्त वायु का (चलना) स्वाभाविक है, व्यापक आकाश में तारों का समूह स्वाभाविक (है)। [6] स्वामी का प्रयोजन पूर्ण किया गया होने पर पुरस्कार प्रासान (है), ईर्ष्या-युक्त व्यक्ति में कषाय स्वाभाविक (है) । [7] सूर्यकान्त मरिणयों द्वारा अग्नि आसानी से प्राप्त (की जा सकती) (है), उत्तम व्याकरण-शास्त्र में पदों में समास सुलभ (है)। [8] पागम में मूल्यों (धर्म) के उपदेश सुलभ (हैं), सुकवि-जन में बुद्धि की श्रेष्ठता सुलभ (है) ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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