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[9-10] मनुष्य अवस्था में प्रिय पत्नी सुलभ (है), किन्तु जिनशासन में अतिपवित्र एक (चारित्र) ही दुर्लभ (है), जिसको (पहले) (मैंने) कभी प्राप्त नहीं किया उस चारित्ररूपी धन को (मैं) कैसे बर्बाद कर दूं ?
घत्ता-इस प्रकार विचार करके जब (सुदर्शन) (जिसका) दर्शन मनोहर (है) शान्तचित्तवाला हुआ (तो) अभयादेवी लज्जित हुई (और) वह निज मन में बार-बार विचार करने लगी।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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